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शिव दर्शन

 


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【शिव पुराण माहात्म्य】

पहला अध्याय


"सूत जी द्वारा शिव पुराण की महिमा का वर्णन"

श्री शौनक जी ने पूछा :- महाज्ञानी सूत जी, आप संपूर्ण सिद्धांतों के ज्ञाता हैं। कृपया मुझसे पुराणों के सार का वर्णन करें। ज्ञान और वैराग्य सहित भक्ति से प्राप्त विवेक की वृद्धि कैसे होती है? तथा साधुपुरुष कैसे अपने काम, क्रोध आदि विकारों का निवारण करते हैं? इस कलियुग में सभी जीव आसुरी स्वभाव के हो गए हैं। अतः कृपा करके मुझे ऐसा साधन बताइए, जो कल्याणकारी एवं मंगलकारी हो तथा पवित्रता लिए हो। प्रभु, वह ऐसा साधन हो, जिससे मनुष्य की शुद्धि हो जाए और उस निर्मल हृदय वाले पुरुष को सदैव के लिए 'शिव' की प्राप्ति हो जाए।

श्री सूत ' जी ने उत्तर दिया :-- शौनक जी आप धन्य हैं, क्योंकि आपके मन में पुराण कथा को सुनने के लिए अपार प्रेम व लालसा है। इसलिए मैं तुम्हें परम उत्तम शास्त्र की कथा सुनाता हूं। वत्स! संपूर्ण सिद्धांत से संपन्न भक्ति को बढ़ाने वाला तथा शिवजी को संतुष्ट करने वाला अमृत के समान दिव्य शास्त्र है- 'शिव पुराण'। इसका पूर्व काल में शिवजी ने ही प्रवचन किया था। गुरुदेव व्यास ने सनत्कुमार मुनि का उपदेश पाकर आदरपूर्वक इस पुराण की रचना की है। यह पुराण कलियुग में मनुष्यों के हित का परम साधन है।

'शिव पुराण' परम उत्तम शास्त्र है। इस पृथ्वीलोक में सभी मनुष्यों को भगवान शिव के विशाल स्वरूप को समझना चाहिए। इसे पढ़ना एवं सुनना सर्वसाधन है। यह मनोवांछित फलों को देने वाला है। इससे मनुष्य निष्पाप हो जाता है तथा इस लोक में सभी सुखों का उपभोग करके अंत में शिवलोक को प्राप्त करता है।


'शिव पुराण' में चौबीस हजार श्लोक हैं, जिसमें सात संहिताएं हैं। शिव पुराण परब्रह्म परमात्मा के समान गति प्रदान करने वाला है। मनुष्य को पूरी भक्ति एवं संयमपूर्वक इसे सुनना चाहिए। जो मनुष्य प्रेमपूर्वक नित्य इसको बांचता है या इसका पाठ करता है, वह निःसंदेह पुण्यात्मा है।

भगवान शिव उस विद्वान पुरुष पर प्रसन्न होकर उसे अपना धाम प्रदान करते हैं। प्रतिदिन आदरपूर्वक शिव पुराण का पूजन करने वाले मनुष्य संसार में संपूर्ण भोगों को भोगकर भगवान शिव के पद को प्राप्त करते हैं। वे सदा सुखी रहते हैं।

शिव पुराण में भगवान शिव का सर्वस्व है। इस लोक और परलोक में सुख की प्राप्ति के लिए आदरपूर्वक इसका सेवन करना चाहिए। यह निर्मल शिव पुराण धर्म, अर्थ, काम और मोक्षरूप चारों पुरुषार्थों को देने वाला है। अतः सदा प्रेमपूर्वक इसे सुनना एवं पढ़ना चाहिए।